ज़बूर 102 - किताब-ए मुक़द्दससिय्यून की बहाली के लिए दुआ (तौबा का पाँचवाँ ज़बूर) 1 मुसीबतज़दा की दुआ, उस वक़्त जब वह निढाल होकर रब के सामने अपनी आहो-ज़ारी उंडेल देता है। ऐ रब, मेरी दुआ सुन! मदद के लिए मेरी आहें तेरे हुज़ूर पहुँचें। 2 जब मैं मुसीबत में हूँ तो अपना चेहरा मुझसे छुपाए न रख बल्कि अपना कान मेरी तरफ़ झुका। जब मैं पुकारूँ तो जल्द ही मेरी सुन। 3 क्योंकि मेरे दिन धुएँ की तरह ग़ायब हो रहे हैं, मेरी हड्डियाँ कोयलों की तरह दहक रही हैं। 4 मेरा दिल घास की तरह झुलसकर सूख गया है, और मैं रोटी खाना भी भूल गया हूँ। 5 आहो-ज़ारी करते करते मेरा जिस्म सुकड़ गया है, जिल्द और हड्डियाँ ही रह गई हैं। 6 मैं रेगिस्तान में दश्ती उल्लू और खंडरात में छोटे उल्लू की मानिंद हूँ। 7 मैं बिस्तर पर जागता रहता हूँ, छत पर तनहा परिंदे की मानिंद हूँ। 8 दिन-भर मेरे दुश्मन मुझे लान-तान करते हैं। जो मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं वह मेरा नाम लेकर लानत करते हैं। 9 राख मेरी रोटी है, और जो कुछ पीता हूँ उसमें मेरे आँसू मिले होते हैं। 10 क्योंकि मुझ पर तेरी लानत और तेरा ग़ज़ब नाज़िल हुआ है। तूने मुझे उठाकर ज़मीन पर पटख़ दिया है। 11 मेरे दिन शाम के ढलनेवाले साय की मानिंद हैं। मैं घास की तरह सूख रहा हूँ। 12 लेकिन तू ऐ रब अबद तक तख़्तनशीन है, तेरा नाम पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रहता है। 13 अब आ, कोहे-सिय्यून पर रहम कर। क्योंकि उस पर मेहरबानी करने का वक़्त आ गया है, मुक़र्ररा वक़्त आ गया है। 14 क्योंकि तेरे ख़ादिमों को उसका एक एक पत्थर प्यारा है, और वह उसके मलबे पर तरस खाते हैं। 15 तब ही क़ौमें रब के नाम से डरेंगी, और दुनिया के तमाम बादशाह तेरे जलाल का ख़ौफ़ खाएँगे। 16 क्योंकि रब सिय्यून को अज़ सरे-नौ तामीर करेगा, वह अपने पूरे जलाल के साथ ज़ाहिर हो जाएगा। 17 मुफ़लिसों की दुआ पर वह ध्यान देगा और उनकी फ़रियादों को हक़ीर नहीं जानेगा। 18 आनेवाली नसल के लिए यह क़लमबंद हो जाए ताकि जो क़ौम अभी पैदा नहीं हुई वह रब की सताइश करे। 19 क्योंकि रब ने अपने मक़दिस की बुलंदियों से झाँका है, उसने आसमान से ज़मीन पर नज़र डाली है 20 ताकि क़ैदियों की आहो-ज़ारी सुने और मरनेवालों की ज़ंजीरें खोले। 21 क्योंकि उस की मरज़ी है कि वह कोहे-सिय्यून पर रब के नाम का एलान करें और यरूशलम में उस की सताइश करें, 22 कि क़ौमें और सलतनतें मिलकर जमा हो जाएँ और रब की इबादत करें। 23 रास्ते में ही अल्लाह ने मेरी ताक़त तोड़कर मेरे दिन मुख़तसर कर दिए हैं। 24 मैं बोला, “ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे ज़िंदों के मुल्क से दूर न कर, मेरी ज़िंदगी तो अधूरी रह गई है। लेकिन तेरे साल पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रहते हैं। 25 तूने क़दीम ज़माने में ज़मीन की बुनियाद रखी, और तेरे ही हाथों ने आसमानों को बनाया। 26 यह तो तबाह हो जाएंगे, लेकिन तू क़ायम रहेगा। यह सब कपड़े की तरह घिस फट जाएंगे। तू उन्हें पुराने लिबास की तरह बदल देगा, और वह जाते रहेंगे। 27 लेकिन तू वही का वही रहता है, और तेरी ज़िंदगी कभी ख़त्म नहीं होती। 28 तेरे ख़ादिमों के फ़रज़ंद तेरे हुज़ूर बसते रहेंगे, और उनकी औलाद तेरे सामने क़ायम रहेगी।” |
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