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फ़िलिप्पियों 3:11 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

11 ताके किसी तरह मुर्दों में से जी उठने के दर्जा तक जा पहुचूं।

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

11 ताकि किसी तरह मुर्दों में से जी उठने के दर्जे तक पहुचूं।

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किताब-ए मुक़द्दस

11 इस उम्मीद में कि मैं किसी न किसी तरह मुरदों में से जी उठने की नौबत तक पहुँचूँगा।

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फ़िलिप्पियों 3:11
17 Cross References  

और तू बरकत पायेगा। क्यूंके उन के पास कुछ नहीं जिस से वह तेरा एहसान चुका सकें, लेकिन तुझे इस एहसान का बदला रास्तबाज़ों की क़ियामत के दिन मिलेगा।”


मर्था ने जवाब दिया, “मैं जानती हूं के वह आख़िरी दिन क़ियामत के वक़्त जी उठेगा।”


पौलुस को मालूम था के उन में बाज़ सदूक़ी हैं और बाज़ फ़रीसी, वह मज्लिस आम्मा में पुकार कर कहने लगे, “मेरे भाईयो, मैं फ़रीसी हूं, फ़रीसियों से आया हूं। मुझ पर इसलिये मुक़द्दमा चिल्लाया जा रहा है के मैं उम्मीद रखता हूं मुर्दों की क़ियामत यानी मुर्दे फिर से जी उठेंगे।”


उसी वादे के पूरा होने की उम्मीद हमारे बारह के बारह क़बीलों को है। इसलिये वह दिन रात दिल-ओ-जान से ख़ुदा की इबादत किया करते हैं। ऐ बादशाह! मेरी इसी उम्मीद के बाइस यहूदी मुझ पर मुक़द्दमा दायर कर रहे हैं।


चूंके वह बन्दरगाह सर्दी का मौसम गुज़ारने के लिये मौज़ूं न थी, इसलिये अक्सरीयत का फ़ैसला ये था के हम आगे बढ़ीं और उम्मीद रख्खीं के फीनिक्स में पहुंच कर सर्दी का मौसम वहां गुज़ार सकेंगे। ये क्रेते की एक बन्दरगाह थी जिस का रुख़ शुमाल मशरिक़ और जुनूब मशरिक़ की जानिब था।


हो सकता है के में अपनी क़ौम वालों को ग़ैरत दिला कर उन में से बाज़ को नजात दिला सकूं!


लेकिन हर एक अपनी-अपनी बारी के मुताबिक़: सब से पहले अलमसीह; फिर अलमसीह के लौटने पर, उन के लोग।


कमज़ोरों की ख़ातिर कमज़ोर बना ताके कमज़ोरों को जीत सकूं। मैं सब लोगों की ख़ातिर सब कुछ बना हुआ हूं ताके किसी न किसी तरह बाज़ को बचा सकूं।


बल्के मैं अपने बदन को मारता, पीटता और उसे क़ाबू में रखता हूं ताके ऐसा न हो के दूसरों को तब्लीग़ करने के बाद में ख़ुद इन्आम से महरूम रह जाऊं।


लेकिन मुझे ख़द्शा है के कहीं तुम्हारे ख़यालात भी हव्वा की तरह, जिसे शैतान सांप ने मक्कारी से बहका दिया था, उस ख़ुलूस और अक़ीदत से जो अलमसीह के लाइक़ है, दूर न हो जायें।


इसी सबब से जब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त न कर सका तो तुम्हारे ईमान का हाल दरयाफ़्त करने को भेजा; मुझे डर था के कहीं ऐसा न हुआ हो के शैतान ने तुम्हें आज़माया हो और हमारी मेहनत बेफ़ाइदा गई हो।


न ही किसी तरह किसी के फ़रेब में आना क्यूंके वह दिन नहीं आयेगा जब तक के लोग ख़ुदा के ख़िलाफ़ ईमान से बर्गश्तः न हो जायें, और वह मर्द-ए-गुनाह यानी हलाकत का फ़र्ज़न्द ज़ाहिर न हो जाये।


मुस्तक़बिल में मेरे लिये रास्तबाज़ी का वो ताज रख्खा हुआ है, जो आदिल और मुन्सिफ़ ख़ुदावन्द मुझे अपने दुबारा आमद के दिन अता फ़रमायेगा। और न सिर्फ़ मुझे बल्के उन सब को भी जो ख़ुदावन्द की आमद के आरज़ूमन्द हैं।


औरतों ने अपने मुर्दा अज़ीज़ों को फिर से ज़िन्दा पाया, बाज़ मार खाते हुए मर गये मगर रिहाई मन्ज़ूर न की ताके उन्हें क़ियामत के वक़्त एक बेहतर ज़िन्दगी हासिल हो।


और जब तक ये हज़ार बरस पूरे न हुए, बाक़ी मुर्दे ज़िन्दा नहीं किये गये। ये पहली क़ियामत है।


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