एकोलाने मी तुम से बोलू हैं की अपनो जिन्दगी को लाने यू चिन्ता नी करनो कि हम का खाएँगो अर का पीए अर नी अपनो जिन्दगी ख लाने कि, का पहिने, का जिन्दगी खान से अर सरीर कपड़ा से बढ़ ख नी हाय?
“एकोलाने होसियार (सावधान) रहनू, असो नी होय कि तुम्हारो मन खुस होय (खुमार) अर मतवालो पन, अर यू सरीर की चिन्ता हुन से लस्त हो जाहे, अर उ दिन तुम प फन्दा को जसो अचानक आ जाहे।
कि कोई आत्मा, या वचन या चिठ्टी को दुवारा, जे कि माननो हमरी तरफ से होय असो मालुम पडे, तुम यू मत समझ लेनो कि प्रभु को दिन आ पहुँचियो हैं, तुमरो मन एकदम से हड़बड़ा नी जाय अर घबरान नी लग जाय कि प्रभु को दिन आ गयो हैं।
हम अपनी सभा हुन म मिलनो-जुड़नो नी छोड़नो चाहिए, जसो कि कुछ इंसान हुन करा हैं, बल्कि हम एक दुसरा ख धीरज दे। जब तुम उ दिन का जोने आते देख रया हैं, ते असो करनो अऊर भी जरूरी हो जाय हैं।
उन न या बात की खोज करी की कि मसी की आत्मा जे उन म थी, अऊर पहले ही से मसी ख दुख हुन कि ओर ओको बाद होवन वाली महिमा की गवाही देतो थो, वाहा कऊन से अऊर कसो बखत की ओर संकेत करतो थो।