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फ़िलिप्पियों 1:30 - किताब-ए मुक़द्दस

30 आप भी उस मुक़ाबले में जाँफ़िशानी कर रहे हैं जिसमें आपने मुझे देखा है और जिसके बारे में आपने अब सुन लिया है कि मैं अब तक उसमें मसरूफ़ हूँ।

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

30 और तुम उसी तरह मेहनत करते रहो जिस तरह मुझे करते देखा था, और अब भी सुनते हो की मैं वैसा ही करता हूँ।

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उर्दू हमअस्र तरजुमा

30 तुम भी उसी तरह जद्द-ओ-जहद करते रहो जिस तरह तुम ने मुझे करते देखा था, और अब भी सुनते हो के मैं अब तक उसी में मसरूफ़ हूं।

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फ़िलिप्पियों 1:30
21 Cross References  

मैंने तुमको इसलिए यह बात बताई ताकि तुम मुझमें सलामती पाओ। दुनिया में तुम मुसीबत में फँसे रहते हो। लेकिन हौसला रखो, मैं दुनिया पर ग़ालिब आया हूँ।”


क्योंकि प्रैटोरियुम के तमाम अफ़राद और बाक़ी सबको मालूम हो गया है कि मैं मसीह की ख़ातिर क़ैदी हूँ।


यही मक़सद पूरा करने के लिए मैं सख़्त मेहनत करता हूँ। हाँ, मैं पूरी जिद्दो-जहद करके मसीह की उस क़ुव्वत का सहारा लेता हूँ जो बड़े ज़ोर से मेरे अंदर काम कर रही है।


मैं चाहता हूँ कि आप जान लें कि मैं आपके लिए किस क़दर जाँफ़िशानी कर रहा हूँ—आपके लिए, लौदीकियावालों के लिए और उन तमाम ईमानदारों के लिए भी जिनकी मेरे साथ मुलाक़ात नहीं हुई।


आप उस दुख से भी वाक़िफ़ हैं जो हमें आपके पास आने से पहले सहना पड़ा, कि फ़िलिप्पी शहर में हमारे साथ कितनी बदसुलूकी हुई थी। तो भी हमने अपने ख़ुदा की मदद से आपको उस की ख़ुशख़बरी सुनाने की जुर्रत की हालाँकि बहुत मुख़ालफ़त का सामना करना पड़ा।


ईमान की अच्छी कुश्ती लड़ें। अबदी ज़िंदगी से ख़ूब लिपट जाएँ, क्योंकि अल्लाह ने आपको यही ज़िंदगी पाने के लिए बुलाया, और आपने अपनी तरफ़ से बहुत-से गवाहों के सामने इस बात का इक़रार भी किया।


मैंने अच्छी कुश्ती लड़ी है, मैं दौड़ के इख़्तिताम तक पहुँच गया हूँ, मैंने ईमान को महफ़ूज़ रखा है।


ग़रज़, हम गवाहों के इतने बड़े लशकर से घेरे रहते हैं! इसलिए आएँ, हम सब कुछ उतारें जो हमारे लिए रुकावट का बाइस बन गया है, हर गुनाह को जो हमें आसानी से उलझा लेता है। आएँ, हम साबितक़दमी से उस दौड़ में दौड़ते रहें जो हमारे लिए मुक़र्रर की गई है।


देखें, आप गुनाह से लड़े तो हैं, लेकिन अभी तक आपको जान देने तक इसकी मुख़ालफ़त नहीं करनी पड़ी।


ईमानदार लेले के ख़ून और अपनी गवाही सुनाने के ज़रीए ही उस पर ग़ालिब आए हैं। उन्होंने अपनी जान अज़ीज़ न रखी बल्कि उसे देने तक तैयार थे।


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