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फ़िलिप्पियों 1:20 - किताब-ए मुक़द्दस

20 हाँ, यह मेरी पूरी तवक़्क़ो और उम्मीद है। मैं यह भी जानता हूँ कि मुझे किसी भी बात में शरमिंदा नहीं किया जाएगा बल्कि जैसा माज़ी में हमेशा हुआ अब भी मुझे बड़ी दिलेरी से मसीह को जलाल देने का फ़ज़ल मिलेगा, ख़ाह मैं ज़िंदा रहूँ या मर जाऊँ।

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

20 चुनाँचे मेरी दिली आरज़ू और उम्मीद यही है कि, मैं किसी बात में शर्मिन्दा न हूँ बल्कि मेरी कमाल दिलेरी के ज़रिए जिस तरह मसीह की ताज़ीम मेरे बदन की वजह से हमेशा होती रही है उसी तरह अब भी होगी, चाहे मैं ज़िंदा रहूँ चाहे मरूँ।

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उर्दू हमअस्र तरजुमा

20 मेरी दिली ख़ाहिश और उम्मीद यह है के मुझे किसी बात में भी शर्मिन्दगी का मुंह न देखना पड़े, बल्के जैसे मैं बड़ी दिलेरी से जिस्म से हमेशा अलमसीह का जलाल ज़ाहिर करता रहा हूं वैसे ही करता रहूंगा, ख़्वाह मैं ज़िन्दा रहूं या मर जाऊं।

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फ़िलिप्पियों 1:20
41 Cross References  

अपने फ़रमान के मुताबिक़ मुझे सँभाल ताकि ज़िंदा रहूँ। मेरी आस टूटने न दे ताकि शरमिंदा न हो जाऊँ।


मेरा दिल तेरे आईन की पैरवी करने में बेइलज़ाम रहे ताकि मेरी रुसवाई न हो जाए।


ऐ मेरे ख़ुदा, तुझ पर मैं भरोसा रखता हूँ। मुझे शरमिंदा न होने दे कि मेरे दुश्मन मुझ पर शादियाना बजाएँ।


लेकिन तू ऐ मेरी जान, ख़ामोशी से अल्लाह ही के इंतज़ार में रह। क्योंकि उसी से मुझे उम्मीद है।


रास्तबाज़ आख़िरकार ख़ुशी मनाएँगे, क्योंकि उनकी उम्मीद बर आएगी। लेकिन बेदीनों की उम्मीद जाती रहेगी।


क्योंकि तेरी उम्मीद जाती नहीं रहेगी बल्कि तेरा मुस्तक़बिल यक़ीनन अच्छा होगा।


लेकिन इसराईल को छुटकारा मिलेगा, रब उसे अबदी नजात देगा। तब तुम्हारी रुसवाई कभी नहीं होगी, तुम हमेशा तक शरमिंदा होने से महफ़ूज़ रहोगे।


लेकिन रब क़ादिरे-मुतलक़ मेरी मदद करता है, इसलिए मेरी रुसवाई नहीं होगी। चुनाँचे मैंने अपना मुँह चक़माक़ की तरह सख़्त कर लिया है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं शरमिंदा नहीं हो जाऊँगा।


मत डरना, तेरी रुसवाई नहीं होगी। शर्मसार न हो, तेरी बेहुरमती नहीं होगी। अब तू अपनी जवानी की शरमिंदगी भूल जाएगी, तेरे ज़हन से बेवा होने की ज़िल्लत उतर जाएगी।


(ईसा की यह बात इस तरफ़ इशारा था कि पतरस किस क़िस्म की मौत से अल्लाह को जलाल देगा।) फिर उसने उसे बताया, “मेरे पीछे चल।”


ख़ैर, मैं अपनी ज़िंदगी को किसी तरह भी अहम नहीं समझता। अहम बात सिर्फ़ यह है कि मैं अपना वह मिशन और ज़िम्मादारी पूरी करूँ जो ख़ुदावंद ईसा ने मेरे सुपुर्द की है। और वह ज़िम्मादारी यह है कि मैं लोगों को गवाही देकर यह ख़ुशख़बरी सुनाऊँ कि अल्लाह ने अपने फ़ज़ल से उनके लिए क्या कुछ किया है।


लेकिन उसने जवाब दिया, “आप क्यों रोते और मेरा दिल तोड़ते हैं? देखें, मैं ख़ुदावंद ईसा के नाम की ख़ातिर यरूशलम में न सिर्फ़ बाँधे जाने बल्कि उसके लिए अपनी जान तक देने को तैयार हूँ।”


दुआ के इख़्तिताम पर वह जगह हिल गई जहाँ वह जमा थे। सब रूहुल-क़ुद्स से मामूर हो गए और दिलेरी से अल्लाह का कलाम सुनाने लगे।


भाइयो, अल्लाह ने आप पर कितना रहम किया है! अब ज़रूरी है कि आप अपने बदनों को अल्लाह के लिए मख़सूस करें, कि वह एक ऐसी ज़िंदा और मुक़द्दस क़ुरबानी बन जाएँ जो उसे पसंद आए। ऐसा करने से आप उस की माक़ूल इबादत करेंगे।


और उम्मीद हमें शरमिंदा होने नहीं देती, क्योंकि अल्लाह ने हमें रूहुल-क़ुद्स देकर उसके वसीले से हमारे दिलों में अपनी मुहब्बत उंडेली है।


अपने बदन के किसी भी अज़ु को गुनाह की ख़िदमत के लिए पेश न करें, न उसे नारास्ती का हथियार बनने दें। इसके बजाए अपने आपको अल्लाह की ख़िदमत के लिए पेश करें। क्योंकि पहले आप मुरदा थे, लेकिन अब आप ज़िंदा हो गए हैं। चुनाँचे अपने तमाम आज़ा को अल्लाह की ख़िदमत के लिए पेश करें और उन्हें रास्ती के हथियार बनने दें।


(आपकी फ़ितरती कमज़ोरी की वजह से मैं ग़ुलामी की यह मिसाल दे रहा हूँ ताकि आप मेरी बात समझ पाएँ।) पहले आपने अपने आज़ा को नजासत और बेदीनी की ग़ुलामी में दे रखा था जिसके नतीजे में आपकी बेदीनी बढ़ती गई। लेकिन अब आप अपने आज़ा को रास्तबाज़ी की ग़ुलामी में दे दें ताकि आप मुक़द्दस बन जाएँ।


हाँ, तमाम कायनात यह देखने के लिए तड़पती है कि अल्लाह के फ़रज़ंद ज़ाहिर हो जाएँ,


यह बात कलामे-मुक़द्दस में लिखी भी है, “देखो मैं सिय्यून में एक पत्थर रख देता हूँ जो ठोकर का बाइस बनेगा, एक चटान जो ठेस लगने का सबब होगी। लेकिन जो उस पर ईमान लाएगा उसे शरमिंदा नहीं किया जाएगा।”


भाइयो, मैं रोज़ाना मरता हूँ। यह बात उतनी ही यक़ीनी है जितनी यह कि आप हमारे ख़ुदावंद मसीह ईसा में मेरा फ़ख़र हैं।


क्योंकि आपको क़ीमत अदा करके ख़रीदा गया है। अब अपने बदन से अल्लाह को जलाल दें।


यों वह बड़ी कश-म-कश में मुब्तला रहता है। इसी तरह ग़ैरशादीशुदा ख़ातून और कुँवारी ख़ुदावंद की फ़िकर में रहती है कि वह जिस्मानी और रूहानी तौर पर उसके लिए मख़सूसो-मुक़द्दस हो। इसके मुक़ाबले में शादीशुदा ख़ातून दुनियावी फ़िकर में रहती है कि अपने ख़ाविंद को किस तरह ख़ुश करे।


क्योंकि अगर मैं उस इख़्तियार पर मज़ीद फ़ख़र भी करूँ जो ख़ुदावंद ने हमें दिया है तो भी मैं शरमिंदा नहीं हूँगा। ग़ौर करें कि उसने हमें आपको ढा देने का नहीं बल्कि आपकी रूहानी तामीर करने का इख़्तियार दिया है।


पस चूँकि हम ऐसी उम्मीद रखते हैं इसलिए बड़ी दिलेरी से ख़िदमत करते हैं।


हर वक़्त हम अपने बदन में ईसा की मौत लिए फिरते हैं ताकि ईसा की ज़िंदगी भी हमारे बदन में ज़ाहिर हो जाए।


और वह सबके लिए इसलिए मुआ ताकि जो ज़िंदा हैं वह अपने लिए न जिएँ बल्कि उसके लिए जो उनकी ख़ातिर मुआ और फिर जी उठा।


उसके सामने मैंने आप पर फ़ख़र किया था, और मैं शरमिंदा नहीं हुआ क्योंकि यह बात दुरुस्त साबित हुई है। जिस तरह हमने आपको हमेशा सच्ची बातें बताई हैं उसी तरह तितुस के सामने आप पर हमारा फ़ख़र भी दुरुस्त निकला।


इसलिए मैं आपसे खुलकर बात करता हूँ और मैं आप पर बड़ा फ़ख़र भी करता हूँ। इस नाते से मुझे पूरी तसल्ली है, और हमारी तमाम मुसीबतों के बावुजूद मेरी ख़ुशी की इंतहा नहीं।


और मेरे क़ैद में होने की वजह से ख़ुदावंद में ज़्यादातर भाइयों का एतमाद इतना बढ़ गया है कि वह मज़ीद दिलेरी के साथ बिलाख़ौफ़ अल्लाह का कलाम सुनाते हैं।


देखें, जो ख़िदमत आप ईमान से सरंजाम दे रहे हैं वह एक ऐसी क़ुरबानी है जो अल्लाह को पसंद है। ख़ुदा करे कि जो दुख मैं उठा रहा हूँ वह मै की उस नज़र की मानिंद हो जो बैतुल-मुक़द्दस में क़ुरबानी पर उंडेली जाती है। अगर मेरी नज़र वाक़ई आपकी क़ुरबानी यों मुकम्मल करे तो मैं ख़ुश हूँ और आपके साथ ख़ुशी मनाता हूँ।


अब मैं उन दुखों के बाइस ख़ुशी मनाता हूँ जो मैं आपकी ख़ातिर उठा रहा हूँ। क्योंकि मैं अपने जिस्म में मसीह के बदन यानी उस की जमात की ख़ातिर मसीह की मुसीबतों की वह कमियाँ पूरी कर रहा हूँ जो अब तक रह गई हैं।


अल्लाह ख़ुद जो सलामती का ख़ुदा है आपको पूरे तौर पर मख़सूसो-मुक़द्दस करे। वह करे कि आप पूरे तौर पर रूह, जान और बदन समेत उस वक़्त तक महफ़ूज़ और बेइलज़ाम रहें जब तक हमारा ख़ुदावंद ईसा मसीह वापस नहीं आ जाता।


लेकिन अगर आपको मसीह के पैरोकार होने की वजह से दुख उठाना पड़े तो न शर्माएँ बल्कि मसीह के नाम में अल्लाह की हम्दो-सना करें।


और अब प्यारे बच्चो, उसमें क़ायम रहें ताकि उसके ज़ाहिर होने पर हम पूरे एतमाद के साथ उसके सामने खड़े हो सकें और उस की आमद पर शरमिंदा न होना पड़े।


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