सच्ची जौ है कि जौ घर मैं रहत भइ हम बोझ मैं दबे भै क्रहात रहथैं, हम चाहथैं कि हम नंगे ना रहमैं, और सरीर मैं लत्ता पहनै कि जो कछु सारीरिक है, बौ जिंदगी को कौरा बन जाबै।
“सुनौ! मैं चुट्टा के तराहनी आए रहो हौं! धन्य है बौ जो जगत रहथै, और अपने लत्तन की रखबारी करथै, ताकी बौ नंगो नाय चलै और सब लोगन के सामने बाकी बेजती ना होबै!”
इसलै मैं तोकै सलाह देथौं, कि सेठ होन के ताहीं मोसे सुद्ध सोना मोल लेबौ। और खुदकै तैयार करन के ताहीं सेतो लत्ता भी मोल लेबौ ताकी अपनी सर्मनाक नंगेपन कै ढकौ। और अपनी आँखी मैं लगान के ताहीं मलहम ले ताकी तुम देखन लगौ