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लूका 3:14 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

14 अनन्तरं सेनागण एत्य पप्रच्छ किमस्माभि र्वा कर्त्तव्यम्? ततः सोभिदधे कस्य कामपि हानिं मा कार्ष्ट तथा मृषापवादं मा कुरुत निजवेतनेन च सन्तुष्य तिष्ठत।

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সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

14 অনন্তৰং সেনাগণ এত্য পপ্ৰচ্ছ কিমস্মাভি ৰ্ৱা কৰ্ত্তৱ্যম্? ততঃ সোভিদধে কস্য কামপি হানিং মা কাৰ্ষ্ট তথা মৃষাপৱাদং মা কুৰুত নিজৱেতনেন চ সন্তুষ্য তিষ্ঠত|

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সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

14 অনন্তরং সেনাগণ এত্য পপ্রচ্ছ কিমস্মাভি র্ৱা কর্ত্তৱ্যম্? ততঃ সোভিদধে কস্য কামপি হানিং মা কার্ষ্ট তথা মৃষাপৱাদং মা কুরুত নিজৱেতনেন চ সন্তুষ্য তিষ্ঠত|

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သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

14 အနန္တရံ သေနာဂဏ ဧတျ ပပြစ္ဆ ကိမသ္မာဘိ ရွာ ကရ္တ္တဝျမ်? တတး သောဘိဒဓေ ကသျ ကာမပိ ဟာနိံ မာ ကာရ္ၐ္ဋ တထာ မၖၐာပဝါဒံ မာ ကုရုတ နိဇဝေတနေန စ သန္တုၐျ တိၐ္ဌတ၊

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satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

14 anantaraM sEnAgaNa Etya papraccha kimasmAbhi rvA karttavyam? tataH sObhidadhE kasya kAmapi hAniM mA kArSTa tathA mRSApavAdaM mA kuruta nijavEtanEna ca santuSya tiSThata|

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સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

14 અનન્તરં સેનાગણ એત્ય પપ્રચ્છ કિમસ્માભિ ર્વા કર્ત્તવ્યમ્? તતઃ સોભિદધે કસ્ય કામપિ હાનિં મા કાર્ષ્ટ તથા મૃષાપવાદં મા કુરુત નિજવેતનેન ચ સન્તુષ્ય તિષ્ઠત|

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लूका 3:14
15 Referencias Cruzadas  

तदनन्तरं यीशुना कफर्नाहूम्नामनि नगरे प्रविष्टे कश्चित् शतसेनापतिस्तत्समीपम् आगत्य विनीय बभाषे,


किन्तु सक्केयो दण्डायमानो वक्तुमारेभे, हे प्रभो पश्य मम या सम्पत्तिरस्ति तदर्द्धं दरिद्रेभ्यो ददे, अपरम् अन्यायं कृत्वा कस्मादपि यदि कदापि किञ्चित् मया गृहीतं तर्हि तच्चतुर्गुणं ददामि।


तदानीं लोकास्तं पप्रच्छुस्तर्हि किं कर्त्तव्यमस्माभिः?


ततः सोकथयत् निरूपितादधिकं न गृह्लित।


इत्युपदिश्य दूते प्रस्थिते सति कर्णीलियः स्वगृहस्थानां दासानां द्वौ जनौ नित्यं स्वसङ्गिनां सैन्यानाम् एकां भक्तसेनाञ्चाहूय


ईश्वरस्य निष्कलङ्काश्च सन्तानाइव वक्रभावानां कुटिलाचारिणाञ्च लोकानां मध्ये तिष्ठत,


अहं यद् दैन्यकारणाद् इदं वदामि तन्नहि यतो मम या काचिद् अवस्था भवेत् तस्यां सन्तोष्टुम् अशिक्षयं।


प्राचीनयोषितोऽपि यथा धर्म्मयोग्यम् आचारं कुर्य्युः परनिन्दका बहुमद्यपानस्य निघ्नाश्च न भवेयुः


ततः परं स्वर्गे उच्चै र्भाषमाणो रवो ऽयं मयाश्रावि, त्राणं शक्तिश्च राजत्वमधुनैवेश्वरस्य नः। तथा तेनाभिषिक्तस्य त्रातुः पराक्रमो ऽभवत्ं॥ यतो निपातितो ऽस्माकं भ्रातृणां सो ऽभियोजकः। येनेश्वरस्य नः साक्षात् ते ऽदूष्यन्त दिवानिशं॥


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