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इब्रानियों 12:5 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

5 तथा च पुत्रान् प्रतीव युष्मान् प्रति य उपदेश उक्तस्तं किं विस्मृतवन्तः? "परेशेन कृतां शास्तिं हे मत्पुत्र न तुच्छय। तेन संभर्त्सितश्चापि नैव क्लाम्य कदाचन।

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সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

5 তথা চ পুত্ৰান্ প্ৰতীৱ যুষ্মান্ প্ৰতি য উপদেশ উক্তস্তং কিং ৱিস্মৃতৱন্তঃ? "পৰেশেন কৃতাং শাস্তিং হে মৎপুত্ৰ ন তুচ্ছয| তেন সংভৰ্ত্সিতশ্চাপি নৈৱ ক্লাম্য কদাচন|

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সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

5 তথা চ পুত্রান্ প্রতীৱ যুষ্মান্ প্রতি য উপদেশ উক্তস্তং কিং ৱিস্মৃতৱন্তঃ? "পরেশেন কৃতাং শাস্তিং হে মৎপুত্র ন তুচ্ছয| তেন সংভর্ত্সিতশ্চাপি নৈৱ ক্লাম্য কদাচন|

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သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

5 တထာ စ ပုတြာန် ပြတီဝ ယုၐ္မာန် ပြတိ ယ ဥပဒေၑ ဥက္တသ္တံ ကိံ ဝိသ္မၖတဝန္တး? "ပရေၑေန ကၖတာံ ၑာသ္တိံ ဟေ မတ္ပုတြ န တုစ္ဆယ၊ တေန သံဘရ္တ္သိတၑ္စာပိ နဲဝ က္လာမျ ကဒါစန၊

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satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

5 tathA ca putrAn pratIva yuSmAn prati ya upadEza uktastaM kiM vismRtavantaH? "parEzEna kRtAM zAstiM hE matputra na tucchaya| tEna saMbhartsitazcApi naiva klAmya kadAcana|

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સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

5 તથા ચ પુત્રાન્ પ્રતીવ યુષ્માન્ પ્રતિ ય ઉપદેશ ઉક્તસ્તં કિં વિસ્મૃતવન્તઃ? "પરેશેન કૃતાં શાસ્તિં હે મત્પુત્ર ન તુચ્છય| તેન સંભર્ત્સિતશ્ચાપિ નૈવ ક્લામ્ય કદાચન|

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इब्रानियों 12:5
33 Referencias Cruzadas  

सोत्र नास्ति स उदस्थात्।


तदा तस्य सा कथा तासां मनःसु जाता।


किन्तु यदास्माकं विचारो भवति तदा वयं जगतो जनैः समं यद् दण्डं न लभामहे तदर्थं प्रभुना शास्तिं भुंज्महे।


सत्कर्म्मकरणेऽस्माभिरश्रान्तै र्भवितव्यं यतोऽक्लान्तौस्तिष्ठद्भिरस्माभिरुपयुक्तसमये तत् फलानि लप्स्यन्ते।


हुमिनायसिकन्दरौ तेषां यौ द्वौ जनौ, तौ यद् धर्म्मनिन्दां पुन र्न कर्त्तुं शिक्षेते तदर्थं मया शयतानस्य करे समर्पितौ।


यदि यूयं शास्तिं सहध्वं तर्हीश्वरः पुत्रैरिव युष्माभिः सार्द्धं व्यवहरति यतः पिता यस्मै शास्तिं न ददाति तादृशः पुत्रः कः?


हे भ्रातरः, विनयेऽहं यूयम् इदम् उपदेशवाक्यं सहध्वं यतोऽहं संक्षेपेण युष्मान् प्रति लिखितवान्।


यो जनः परीक्षां सहते स एव धन्यः, यतः परीक्षितत्वं प्राप्य स प्रभुना स्वप्रेमकारिभ्यः प्रतिज्ञातं जीवनमुकुटं लप्स्यते।


येष्वहं प्रीये तान् सर्व्वान् भर्त्सयामि शास्मि च, अतस्त्वम् उद्यमं विधाय मनः परिवर्त्तय।


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