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2 कुरिन्थियों 12:6 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

6 यद्यहम् आत्मश्लाघां कर्त्तुम् इच्छेयं तथापि निर्ब्बोध इव न भविष्यामि यतः सत्यमेव कथयिष्यामि, किन्तु लोका मां यादृशं पश्यन्ति मम वाक्यं श्रुत्वा वा यादृशं मां मन्यते तस्मात् श्रेष्ठं मां यन्न गणयन्ति तदर्थमहं ततो विरंस्यामि।

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সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

6 যদ্যহম্ আত্মশ্লাঘাং কৰ্ত্তুম্ ইচ্ছেযং তথাপি নিৰ্ব্বোধ ইৱ ন ভৱিষ্যামি যতঃ সত্যমেৱ কথযিষ্যামি, কিন্তু লোকা মাং যাদৃশং পশ্যন্তি মম ৱাক্যং শ্ৰুৎৱা ৱা যাদৃশং মাং মন্যতে তস্মাৎ শ্ৰেষ্ঠং মাং যন্ন গণযন্তি তদৰ্থমহং ততো ৱিৰংস্যামি|

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সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

6 যদ্যহম্ আত্মশ্লাঘাং কর্ত্তুম্ ইচ্ছেযং তথাপি নির্ব্বোধ ইৱ ন ভৱিষ্যামি যতঃ সত্যমেৱ কথযিষ্যামি, কিন্তু লোকা মাং যাদৃশং পশ্যন্তি মম ৱাক্যং শ্রুৎৱা ৱা যাদৃশং মাং মন্যতে তস্মাৎ শ্রেষ্ঠং মাং যন্ন গণযন্তি তদর্থমহং ততো ৱিরংস্যামি|

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သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

6 ယဒျဟမ် အာတ္မၑ္လာဃာံ ကရ္တ္တုမ် ဣစ္ဆေယံ တထာပိ နိရ္ဗ္ဗောဓ ဣဝ န ဘဝိၐျာမိ ယတး သတျမေဝ ကထယိၐျာမိ, ကိန္တု လောကာ မာံ ယာဒၖၑံ ပၑျန္တိ မမ ဝါကျံ ၑြုတွာ ဝါ ယာဒၖၑံ မာံ မနျတေ တသ္မာတ် ၑြေၐ္ဌံ မာံ ယန္န ဂဏယန္တိ တဒရ္ထမဟံ တတော ဝိရံသျာမိ၊

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satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

6 yadyaham AtmazlAghAM karttum icchEyaM tathApi nirbbOdha iva na bhaviSyAmi yataH satyamEva kathayiSyAmi, kintu lOkA mAM yAdRzaM pazyanti mama vAkyaM zrutvA vA yAdRzaM mAM manyatE tasmAt zrESThaM mAM yanna gaNayanti tadarthamahaM tatO viraMsyAmi|

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સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

6 યદ્યહમ્ આત્મશ્લાઘાં કર્ત્તુમ્ ઇચ્છેયં તથાપિ નિર્બ્બોધ ઇવ ન ભવિષ્યામિ યતઃ સત્યમેવ કથયિષ્યામિ, કિન્તુ લોકા માં યાદૃશં પશ્યન્તિ મમ વાક્યં શ્રુત્વા વા યાદૃશં માં મન્યતે તસ્માત્ શ્રેષ્ઠં માં યન્ન ગણયન્તિ તદર્થમહં તતો વિરંસ્યામિ|

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2 कुरिन्थियों 12:6
12 Referencias Cruzadas  

अहं काञ्चिद् कल्पितां कथां न कथयामि, ख्रीष्टस्य साक्षात् सत्यमेव ब्रवीमि पवित्रस्यात्मनः साक्षान् मदीयं मन एतत् साक्ष्यं ददाति।


पौलः कः? आपल्लो र्वा कः? तौ परिचारकमात्रौ तयोरेकैकस्मै च प्रभु र्यादृक् फलमददात् तद्वत् तयोर्द्वारा यूयं विश्वासिनो जाताः।


युष्मान् प्रति मया कथितानि वाक्यान्यग्रे स्वीकृतानि शेषेऽस्वीकृतानि नाभवन् एतेनेश्वरस्य विश्वस्तता प्रकाशते।


अहं पुन र्वदामि कोऽपि मां निर्ब्बोधं न मन्यतां किञ्च यद्यपि निर्ब्बोधो भवेयं तथापि यूयं निर्ब्बोधमिव मामनुगृह्य क्षणैकं यावत् ममात्मश्लाघाम् अनुजानीत।


मया मृषावाक्यं न कथ्यत इति नित्यं प्रशंसनीयोऽस्माकं प्रभो र्यीशुख्रीष्टस्य तात ईश्वरो जानाति।


एतेनात्मश्लाघनेनाहं निर्ब्बोध इवाभवं किन्तु यूयं तस्य कारणं यतो मम प्रशंसा युष्माभिरेव कर्त्तव्यासीत्। यद्यप्यम् अगण्यो भवेयं तथापि मुख्यतमेभ्यः प्रेरितेभ्यः केनापि प्रकारेण नाहं न्यूनोऽस्मि।


अपरम् उत्कृष्टदर्शनप्राप्तितो यदहम् आत्माभिमानी न भवामि तदर्थं शरीरवेधकम् एकं शूलं मह्यम् अदायि तत् मदीयात्माभिमाननिवारणार्थं मम ताडयिता शयतानो दूतः।


यदि वयं हतज्ञाना भवामस्तर्हि तद् ईश्वरार्थकं यदि च सज्ञाना भवामस्तर्हि तद् युष्मदर्थकं।


पूर्व्वं तस्य समीपेऽहं युष्माभिर्यद् अश्लाघे तेन नालज्जे किन्तु वयं यद्वद् युष्मान् प्रति सत्यभावेन सकलम् अभाषामहि तद्वत् तीतस्य समीपेऽस्माकं श्लाघनमपि सत्यं जातं।


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